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Rikshewale made son of IAS officer!(रिक्शेवाले का बेटा बना IAS officer !)

                          रिक्शेवाले का बेटा बना IAS officer !                                                                                                                       

Rikshaw puller IAS Officer in Hindi
अपने पिता श्री नारायण जैसवाल के साथ गोविन्द

रिक्शेवाले  का बेटा बना IAS officer !

अगर  career के  point of view से  देखा  जाए  तो  India  में  थ्री आइज़ (3 Is) का   कोई  मुकाबला  नही:
IIT,IIM, और IAS. लेकिन इन तीनो  में  IAS का  रुतबा  सबसे  अधिक  है . हर  साल  लाखों  परीक्षार्थी  IAS officer बनने  की  चाह  में  Civil Services के  exam में  बैठते  हैं  पर  इनमे  से 0.025 percent से  भी  कम  लोग  IAS officer बन  पाते  हैं . आप  आसानी  से  अंदाज़ा  लगा  सकते  हैं  कि  IAS beat करना  कितना  मुश्किल  काम है , और ऐसे  में  जो  कोई  भी  इस  exam को  clear करता  है  उसके  लिए  अपने  आप  ही  मन  में  एक  अलग  image बन  जाती  है . और  जब  ऐसा  करने  वाला  किसी  बहुत  ही  साधारण  background से  हो  तो  उसके  लिए  मन  में  और  भी  respect आना  स्वाभाविक  है .
आज  AKC पर  मैं  आपके  साथ  ऐसे  ही  एक  व्यक्ति की  कहानी  share  कर  रहा  हूँ  जो  हज़ारो  दिक्कतों  के  बावजूद  अपने  दृढ  निश्चय  और  मेहनत  के  बल  पर  IAS officer बना .
ये  कहानी  है  Govind Jaiswal की , गोविन्द   के  पिता  एक  रिक्शा -चालक  थे , बनारस  की  तंग  गलियों  में  , एक  12 by 8 के  किराए  के  कमरे  में  रहने  वाला  गोविन्द  का  परिवार  बड़ी  मुश्किल  से  अपना  गुजरा  कर  पाता  था . ऊपर से  ये  कमरा  ऐसी  जगह  था  जहाँ  शोर -गुल  की कोई  कमी  नहीं  थी , अगल-बगल  मौजूद  फक्ट्रियों  और  जनरेटरों  के  शोर  में  एक  दूसरे  से  बात  करना  भी  मुश्किल  था .
नहाने -धोने  से  लेकर  खाने -पीने  तक  का  सारा  काम इसी  छोटी  सी जगह  में  Govind , उनके  माता -पिता  और  दो  बहने  करती  थीं . पर  ऐसी  परिस्थिति  में  भी  गोविन्द  ने  शुरू  से  पढाई  पर  पूरा  ध्यान  दिया .
अपनी  पढाई  और  किताबों  का  खर्चा  निकालने  के  लिए  वो   class 8 से  ही  tuition पढ़ाने  लगे . बचपन  से  एक  असैक्षिक  माहौल  में  रहने  वाले  गोविन्द  को  पढाई  लिखाई   करने  पर  लोगों  के  ताने  सुनने पड़ते  थे . “ चाहे  तुम  जितना  पढ़ लो  चलाना  तो  रिक्शा  ही  है ” पर  गोविन्द  इन  सब  के  बावजूद  पढाई  में  जुटे  रहते . उनका  कहना  है . “ मुझे  divert करना  असंभव था .अगर  कोई  मुझे  demoralize करता  तो  मैं  अपनी  struggling family के  बारे  में  सोचने  लगता .”
आस – पास  के  शोर  से  बचने  के  लिए  वो  अपने  कानो  में  रुई लगा  लेते  , और  ऐसे  वक़्त  जब  disturbance ज्यादा  होती  तब  Maths लगाते  , और  जब  कुछ  शांती  होती  तो  अन्य  subjects पढ़ते .रात में  पढाई के लिए अक्सर उन्हें मोमबत्ती, ढेबरी , इत्यादि का सहारा लेना पड़ता क्योंकि उनके इलाके में १२-१४ घंटे बिजली कटौती रहती.
चूँकि   वो  शुरू  से  school topper रहे  थे  और  Science subjects में  काफी  तेज  थे  इसलिए   Class 12 के  बाद  कई  लोगों  ने  उन्हें  Engineering करने  की  सलाह  दी ,. उनके  मन  में  भी  एक  बार  यह विचार  आया , लेकिन  जब  पता  चला  की  Application form की  fees ही  500 रुपये  है  तो  उन्होंने  ये  idea drop कर  दिया , और  BHU से  अपनी  graduation करने  लगे , जहाँ  सिर्फ  10 रूपये की औपचारिक fees थी .
Govind अपने  IAS अफसर बनने  के  सपने  को  साकार  करने  के  लिए  पढ़ाई  कर  रहे  थे  और  final preparation के  लिए  Delhi चले  गए  लेकिन  उसी  दौरान   उनके  पिता  के  पैरों  में  एक  गहरा  घाव  हो  गया  और  वो  बेरोजगार  हो  गए . ऐसे  में  परिवार  ने  अपनी  एक  मात्र  सम्पत्ती  , एक  छोटी  सी  जमीन  को  30,000 रुपये  में  बेच  दिया  ताकि  Govind अपनी  coaching पूरी  कर  सके . और  Govind ने  भी  उन्हें  निराश  नहीं  किया , 24 साल  की  उम्र  में  अपने  पहले  ही attempt में (Year 2006)  474 सफल  candidates में  48 वाँ  स्थान  लाकर  उन्होंने  अपनी  और  अपने  परिवार  की  ज़िन्दगी  हमेशा -हमेशा  के  लिए  बदल  दी .
Maths पर  command होने  के  बावजूद  उन्होंने  mains के  लिए  Philosophy और  History choose किया , और  प्रारंभ  से  इनका  अध्यन  किया ,उनका कहना  है  कि , “ इस  दुनिया  में  कोई  भी  subject कठिन  नहीं  है , बस आपके  अनादर  उसे  crack करने  की  will-power होनी  चाहिए .”
अंग्रेजी  का  अधिक  ज्ञान  ना  होने पर  उनका  कहना  था , “ भाषा  कोई  परेशानी  नहीं  है , बस  आत्मव्श्वास  की ज़रुरत  है . मेरी  हिंदी  में  पढने  और  व्यक्त  करने  की  क्षमता  ने  मुझे  achiever बनाया .अगर  आप  अपने  विचार  व्यक्त  करने  में  confident हैं  तो  कोई  भी  आपको  सफल  होने  से  नहीं  रोक  सकता .कोई  भी  भाषा  inferior या  superior नहीं  होती . ये  महज  society द्वारा  बनाया  गया  एक  perception है .भाषा  सीखना  कोई  बड़ी  बात  नहीं  है – खुद  पर  भरोसा  रखो . पहले  मैं  सिर्फ  हिंदी  जानता  था ,IAS academy में  मैंने  English पर  अपनी  पकड़  मजबूत  की . हमारी  दुनिया  horizontal है —ये  तो  लोगों  का  perception है  जो  इसे  vertical बनता  है , और  वो  किसी  को  inferior तो  किसी  को  superior बना  देते  हैं .”
 गोविन्द  जी  की  यह  सफलता  दर्शाती  है  की  कितने  ही  आभाव  क्यों  ना  हो  यदि  दृढ  संकल्प  और  कड़ी मेहनत   से  कोई  अपने  लक्ष्य -प्राप्ति  में  जुट  जाए  तो  उसे  सफलता  ज़रूर  मिलती  है . आज  उन्हें  IAS officer बने  5 साल  हो  चुके  हैं  पर  उनके  संघर्ष  की  कहानी  हमेशा  हमें प्रेरित  करती  रहेगी .

Chaywale becoming a web developer's story(चायवाले के वेब डेवलपर बनने की कहानी)

                  चायवाले के वेब डेवलपर बनने की कहानी                                                                                                                                            

शायद  ही इससे पहले किसी entry -level employee की hiring के बारे में किसी कंपनी के CEO ने इस तरह tweet किया होगा … दोस्तों , वो चायवाला था राजू … राजू यादव, जिसने न सिर्फ अपने सपने को पूरा  किया था बल्कि करोड़ों और आँखों को भी सपने देखने की हिम्मत दे डाली थी … आइये आज हम उसी चायवाले  के बारे में जानते हैं :
14 साल का राजू हजारीबाग , बिहार (अब झारखंड ) में अपने माता -पिता और दो भाइयों के साथ रहता था . जब वो क्लास 6th में था तभी उसे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी , वजह थी परिवार पर हज़ारों का कर्ज और parents की खराब तबियत . राजू भाइयों में सबसे बड़ा था और परिवार की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने का दबाव उस पर आ पड़ा . पैसा कमाने की चाहत उसे Worli, Mumbai ले आई , जहाँ वो अपने एक Uncle, जो कि taxi चलाते थे , के साथ रहने लगा .
Rags to riches story in Hindi
राजू बन गया जेंटलमैन !
जल्द ही राजू  2000 की नौकरी पर एक चाय की दुकान पर लग गया . जगह थी मुंबई का चीरा बाजार . वह रोज सुबह 5 बजे काम पर लग जाता और आस -पास की दुकानो और offices में चाय पहुंचता, उन्ही में से एक Sagaai.Com का भी ऑफिस था , जो बाद में Shaadi.Com के नाम से जाना जाने लगा .
जब राजू से किसी रिपोर्टर ने पुछा , “ क्या ये सब करना कठिन नहीं था ?” तो वे कहते हैं ,
“था , पर मैंने इसे ऐसे नहीं देखा , मेरे पास एक job थी और मैं घर पर पैसे भेज पा रहा था ..”
राजू को बतौर चायवाला काम करते अभी कुछ ही महीने  हुए थे कि किसी ने उसे Sagaai.Com  के ऑफिस में में छोटे -मोटे काम करने का offer दे दिया .
राजू  ने  कुछ सोचा और इस काम के लिए तैयार हो गया . अब उसे पहले से 500 रुपये अधिक मिलने लगे और टाइम भी कम देना होता था .
राजू  Shaadi.Com के staffs को चाय देना , पानी की bottles बदलना , cheque जमा करना जैसे काम करने लगा . छोटी उम्र में ये सब करते देख कई लोग उसे आगे पढ़ने की सलाह देते .
राजू का कहना है , “ जब मैं Mumbai आया तो मुझे एहसास हुआ कि शिक्षा  से बहुत फर्क पड़ता है कि लोग कैसे रहते और काम करते हैं . मैं अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहता था . मुझे लगा कि Shaadi.Com पर मैं अपने सपने पूरे कर पाउँगा .”
जब राजू से पुछा गया कि office के छोटे -मोटे काम करते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई कैसे पूरी की तो उन्होंने बताया , “ मुझे पता था कि मैंने अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की है , मैं 6th standard drop-out था . मैं छुट्टियों में झारखण्ड अपने घर जाया करता था …एक बार मैंने वहां district school में खुद को क्लास 10th  में  enrol करा दिया और course की किताबें Mumbai लेकर आ गया . अपने पहले attempt में मैं fail हो गया पर दूसरी बार में मैंने 61% नंबरों के साथ 10th पास किया , और फिर 47% नंबरों के साथ 12th की भी पढ़ाई पूरी की .”
Shaadi.Com के ऑफिस में बहुत से वेब डेवलपर्स थे और उन्हें काम करते देख राजू के मन में भी वेब डेवेलपमेंट सीखने की इच्छा जागी. ऑफिस ने भी उनकी मदद की और वहां देर तक रुक कर पढ़ना allow कर दिया. अब हर रोज काम करने के बाद राजू ऑफिस में बैठे-बैठे ऑनलाइन कोर्सेज किया करते थे और समस्याएं आने पर अगले दिन स्टाफ से पूछ लिया करते थे. ये उनकी कड़ी मेहनत और कभी हार ना मानने के ज़ज़्बे का ही नतीजा था कि वे वेब डेवलपमेंट की बारीकियां सीख पाये और जब Shaadi.Com में opening आई तो उसके लिए apply करने की हिम्मत जुटा पाये. सभी कैंडिडेट्स की तरह उन्हें भी selection procedure से गुजरना पड़ा और अंत में सफलता ने उनके कदम चूमे  , वे सेलेक्ट हो गए. सचमुच राजू  के लिए ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी !
राजू कहते हैं , “भले ही वे एक वेब डेवलपर बन गए हैं पर उन्हें पता है कि उन्हें अभी एक लम्बा सफर तय करना है. लोग कह सकते हैं कि एक छोटे से गाँव से निकल कर एक चायवाला और फिर एक वेब डेवलपर बनना बड़ी बात है पर सीखने की मेरी इच्छा कभी कम नहीं हो सकती.”
राजू अभिभावकों और नवयुवकों को भी सन्देश देना चाहते हैं , वे कहते हैं कि, ” Parents बच्चों की पढाई पर बहुत अधिक ध्यान दें. मैंने ऐसे पेरेंट्स को देखा है जो पढाई को ज़रूरी नहीं समझते. कभी-कभी गरीबी की वजह से पढाई से ज्यादा कोई काम कर के पैसा कमाने को ज्यादा अहमियत देते हैं पर बहुत बार वे बच्चों को पढ़ाने से अधिक ज़मीन खरीदने को महत्त्व देते हैं. बहुत से युवा भी हैं जो ज़िन्दगी भर सरकारी नौकरी का इंतज़ार करते रहते हैं , और इसी चक्कर में अपना समय बर्वाद कर देते हैं. पूरी ज़िन्दगी उस सरकारी नौकरी का इंतज़ार मत करो , जो शायद कभी हाथ ही ना आये… जब भी कोई मौका मिले तो उसे गंवाओ नहीं , वार्ना वो हमेशा के लिए तुमसे दूर हो जायेगी.”
राजू अभी मुंबई में ही किराए के एक मकान में अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहते हैं और साथ ही मुंबई विश्वविद्यालय से B.Com की पढ़ाई कर रहे हैं. एक चाय वाले से वेबडेवलपर बनने की इस बड़ी उपलब्धि पर हम उन्हें ढेरों शुभकामनाएं देते हैं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं.

What is life about?(ज़िन्दगी किस बारे में है ?)

                             ज़िन्दगी किस बारे में है ?                                                                                                                                             

Bryce Courtenay (1989–2012) ऑस्ट्रेलिया के महान साहित्यकारों में गिने जाते हैं। उन्होंने 55 साल की उम्र से लिखना शुरू किया और अपने जीवन में 21 किताबें पब्लिश कीं जिनकी 2 करोड़ से अधिक प्रतियां बिकीं। उनकी सबसे ज्यादा पॉपुलर बुक थी, “The Power of One“.
Motivational Article on Life in Hindi
Life is not about having things. It is about doing things.
Bryce ने 2007 में एक छोटी सी किताब लिखी थी “A Recipe for Dreaming” जिसमे उन्होंने कुछ बहुत ही ज़रूरी और सोचने पर मजबूर करने वाली बातें लिखीं थीं। उसी का एक अंश आज मैं आपके साथ शेयर कर रहा हूँ :
“Superannuation is what we get paid for being bored for thirty years.
It seems to me we’re obsessed with having things.  We put ourselves in debt for thirty years to own a house.  We work at thankless jobs we hate for thirty years to have sufficient money to retire with security and to die in absolute obscurity.
There is another way.  The idea is to dream up the things you want to do and make them happen.
Life is not about having things, life is about doing things.
Doing things has a rewarding result. 
You either make more money that you need without being bored in the process, or you discover that you don’t really need all that fiscal security to live happily ever after.
You also die smiling.”
“पेंशन वो चीज है जो हमें तीस साल तक बोर होने के लिए मिलती है। 
ऐसा लगता है हमारे ऊपर चीजों को इकठ्ठा करने का जूनून सवार है। हम एक घर करने के लिए खुद को तीस साल तक कर्ज में डाल देते हैं। हम तीस साल तक बेकार की नौकरियां करते रहते हैं जिनसे हम नफरत करते हैं , ताकि रिटायर होने के लिए हमारे पास पर्याप्त पैसा रह सके और हम पूर्ण अन्धकार में मर सकें।
एक दूसरा तरीका है। हम उन चीजों का सपना देखें जिन्हे हम करना चाहते हैं और उन्हें कर डालें।
ज़िन्दगी चीजों के होने के बारे में नहीं है , ज़िन्दगी चीजों को करने के बारे में है।
चीजों को करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं ।
या तो आप बिना बोर हुए जितनी ज़रुरत है उससे अधिक पैसे कमाते हैं , या आप ये जान लेते हैं कि खुशहाली से जीने के लिए आपको इतनी आर्थिक सुरक्षा की ज़रुरत नहीं है।
और आप मरते भी हँसते हुए हैं। “
Friends, unfortunately, अधिकतर लोग पहले तरीके से ही ज़िन्दगी जिए जा रहे हैं … पर मेरी नज़र में बड़ी समस्या ये नहीं है , बड़ी समस्या ये है कि हम ज़िन्दगी जीने का अपना तरीका बदलने की कोशिश भी नहीं कर रहे … ये जानते हुए भी की हमारी ज़िन्दगी का बीता हुआ एक भी पल कभी लौट कर वापस नहीं आने वाला हम एक ऐसी life जिए जा रहे हैं जो हमारी ही नज़रों में बेकार है … कितनी अजीब बात है !! हम कुछ करते क्यों नहीं … हम इस तरह की बातें सुन कर थोड़ी देर के लिए excited तो हो जाते हैं पर फिर कुछ समय बाद सब कुछ भूल क्यों जाते हैं ?? क्या हमारी life important नहीं है ???… क्या हम बस यूँही इस दुनिया में exist करने के लिए आये हैं … क्या हमारी life का कोई मतलब नहीं है ??
I don’t know आप क्या सोचते हैं , पर मुझे लगता है कि हम सभी की life का कोई न कोई मकसद है … अगर हमें वो पता है तो ठीक नहीं तो हमें उसे ढूँढना होगा , हमें अपनी life का purpose जानना होगा या अपनी लाइफ को एक परपज देना होगा … हमें चीजों के पीछे भागना छोड़ना होगा और हमेशा ये याद रखना होगा कि Life is not just about having things, life is about doing things.

Apple founder Steve Jobs's 8 lessons(एप्पल फाउंडर स्टीव जॉब्स के 8 सबक)

                             एप्पल फाउंडर स्टीव जॉब्स के 8 सबक                                                            स्टीव जॉब्स बहुत बड़े अविष्कारक और प्रवर्तक थे | उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा | कहते हैं कि स्टीव जॉब्स जब तक जिए ,केवल काम ही करते रहे अपनी मृत्यु से 6 सप्ताह पूर्व तक वे एप्पल के लिए समर्पित रहे | उन्होंने अपने जीवन में कुछ अकाट्य बातें कही जो आज के युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है |

Steve Jobs
Steve Jobs
स्टीव ने समय समय पर जो प्रेरणादायक बातें कही उनमे से कुछ यहाँ प्रस्तुत है -:
हमेशा लीक से हटकर चले -: जॉब्स ने कहा की जब कोई सबके साथ नही चलता हमारे मन की बात नही करता तो हम तुरंत कह देते है “ यह तो पागल है | छोड़ो इसे अपना काम करो |लेकिन जॉब्स इसे साधारण नही मानते जिसे लोग पागल कहते है | विद्रोही कहते है |,संकट पैदा करने वाला मानते है |उसमे वास्तव में कुछ असाधारण है तभी तो वो आपसे अलग ढंग से बोल रहा है, सोच रहा है या कह रहा है |उसकी बात ध्यान से सुनो | कुछ न कुछ तो है | वह आपके लिए मूल्यवान हो सकता है| क्यूंकि ऐसे लोग नियमों की परवाह नही करते | उन्हें अपने सम्मान या अहंकार की भी परवाह नही होती | क्यूंकि वे चीजों को बदलने की क्षमता रखते है | वे दौड को आगे बढ़ाते है | आज वे अकेले है इसलिए पागल कहे जाते है | जब दुनिया उनके पीछे होगी, तब वे बुद्धिमान कहे जायेंगे |
निर्धारित करें की आप क्या करना चाहते है -: स्टीव ने कहा की सबसे महत्वपूर्ण अपने दिल और अंतर्ज्ञान पर अमल करने का साहस करें | किसी तरह उन्हें पहले से ही पता होता है की आप सही में क्या बनाना चाहते है | बाकी हर चीज गौण है | उन्होंने कहा की आप अपने दिल और अंतर्मन की आवाज क्यों नही सुन रहे हो आपके अन्दर लक्ष्य पहले से ही निश्चित होता है इसलिए वही करिए जो आप करना चाहते है और यदि वह कार्य आपको नही मिला है तो उसे ढूढ़ते रहिये और जिस दिन वो आपको मिल जाएगा तो आप स्वयं जान जायेंगे की आपको करना क्या है |
Think Different -: यह स्टीव का मूल मंत्र था | कितना छोटा सा शब्द लेकिन कितनी गहराई लये हुए इसी शब्द के भरोसे उन्होंने उधोगों को बदला, बिजनेस मोडल को नई परिभाषा दी और टेक्नोलॉजी को आर्ट से जोड़ा आज लोग उनकी तुलना थॉमस एडिसन,वाल्ट डिज्नी,लियानार्दो द विंची से कर रहे है लोग चिल्ला चिल्ला कर कह रहे है की स्टीव जैसा शख्स अब जल्द दुनिया को मिलने वाला नही है | इस सब के पीछे क्या था ? एक अलग तरह की सोच,एकला चलो की नीति और दूसरों के ढेर सारे निर्णयों को बदलते हुए अपनी आत्मा की आवाज के नक़्शे कदम पर चलना |
इंतज़ार बंद कीजिये अकेले चलिए -: स्टीव कहते थे की यदि जीतना है, सफल होना है तो अकेले ही चलना होगा . आज तक दुनिया में जितने भी सितारे चमके है सब अकेले ही चले है | वे लोगो को मोटीवेट करते थे और कहते थे की किसका इन्तेजार कर रहे हो ?आपको जिताने के लिए कोई नही आएगा | आपको खुद जीतना होगा | जिंदगी केवल समय काटने के लिए नही है बल्कि जिन्दादिली के साथ जीने के लिए है ज़िन्दगी घिसटने के लिए नही है वल्कि उड़ान भरने के लिए है जिंदगी को बोझ मत समझिये बल्कि मुस्कुरा कर जिए | इन्तेजार मत कीजिये लग जाइए अकेले चलिए और इतिहास रच दीजिये |
Don’t compromise – : स्टीव जॉब्स अपने कर्मचारियों से हमेशा कहते थे की Design , material , technology , and craftsmanship में कभी भी समझोता मत करो समझोता एक इंजेक्शन की भाति है जो सहायक भी हो सकता है और तकलीफ़देह भी यदि हार मानकर समझोता कर लिया तो फिर आपकी क्या कीमत रह जायेगी ? आप किस लिए है? क्या  समझोता करने के लिए| यह काम तो कोई भी कर सकता है अतः आपमें और औरों में क्या अंतर हुआ अतः मेरी सलाह है की अपनी अंतरात्मा की आवाज के विपरीत किसी भी अन्य बात पर समझोता मत करों और हमेशा बदलाव की सोच रखो |
समय अनमोल है -: स्टीव जॉब्स कहते है जिंदगी का बीतने वाला प्रत्येक क्षण आपकी ज़िन्दगी से कुछ न कुछ चुरा ले जाता है और आपको पता ही नही चलता और अंततः एक दिन वह आता है जब हमें पता चलता है की हमने ज़िन्दगी में कुछ किया ही नही पूरी ज़िन्दगी यूँ ही बीत गयी |जीवन में कुछ अर्थपूर्ण करना है तो समय के महत्त्व को समझना होगा।
मनुष्य अपने भाग्य का विधाता स्वयं है -: यह वाक्य बताता है कि यदि मनुष्य चाहे तो स्वयं असंभव को संभव कर सकता है आपका भाग्य,आपके कर्म सिद्धांत,दुसरो की सहायता यह सब अपनी जगह सही हो सकते है| लेकिन यह भी सत्य है की मनुष्य अपनी संकल्पशक्ति के सहारे भाग्य को भी बदल सकता है| बहुतों ने ऐसा कर दिखाया है और बहुत लोग आज कर रहे है,और आगे भी करेंगे सब कुछ तुम्हारे अन्दर है| अनंत शक्ति वाली सत्ता तुम्हारे अन्दर निवास करती है | फिर तुम्हे किसके सहारे की जरूरत है इसलिए उस कार्य में लग जाइए जिसे आप करना चाहते है |

मृत्यु एक सत्य है -: जॉब्स ने बताया इस अटल सत्य को ऐसे समझना चाहिए कि “आपके पास खोने के लिए कुछ नही है| ”सबसे अच्छा तरीका यह याद करना है की आप मरने जा रहे है. उन्होंने कहा ,जब मृत्यु उपयोगी लेकिन शुद्ध रूप से बौद्धिक अवधारणा थी ,उसके मुकाबले में अब पहले से ज्यादा निश्चय के साथ आपसे कह सकता हूँ की कोई मरना नही चाहता यहाँ तक की वह लोग जो स्वर्ग जाना चाहते है वे भी वह जाने के लिए मौत नही चाहते|                    

Why am I like this?( मैं ऐसा क्यों हूँ ?)

                                 मैं ऐसा क्यों हूँ ?

पट्टू तोता बड़ा उदास बैठा था .
Inspirational Hindi Story on Jelousy
मैं ऐसा क्यों हूँ ?
माँ ने पुछा , ” क्या हुआ बेटा तुम इतने  उदास क्यों हो ?”
” मैं अपनी इस अटपटी चोंच से नफरत करता हूँ !!”, पट्टू लगभग रोते हुए बोला .
“तुम अपनी चोंच से नफरत क्यों करते हो ?? इतनी सुन्दर तो है !”, माँ ने समझाने की कोशिश की .
“नहीं , बाकी सभी पक्षियों की चोंच कहीं अच्छी है …. बिरजू बाज , कालू कौवा , कल्कि कोयल … सभी की चोंच मुझसे अच्छी है…. पर मैं ऐसा क्यों हूँ ?”, पट्टू उदास बैठ गया .
माँ कुछ देर शांति से बैठ गयी , उसे भी लगा कि शायद पट्टू सही कह रहा है , पट्टू को समझाएं तो कैसे …। तभी उसे सूझा कि क्यों ना पट्टू को  ज्ञानी काका के पास भेजा जाए , जो  पूरे जंगल में सबसे समझदार तोते के रूप में जाने जाते थे .
माँ  ने  तुरंत ही पट्टू को काका के  पास भेज दिया .
ज्ञानी काका जंगल  के बीचो -बीच एक बहुत पुराने  पेड़  की शाखा पर  रहते थे।
पट्टू उनके समक्ष जाकर बैठ गया और पुछा , ” काका , मेरी एक समस्या है !”
“प्यारे बच्चे तुम्हे क्या दिक्कत है , बताओ मुझे “, काका बोले .
पट्टू बताने लगा ,” मुझे मेरी चोंच पसंद नहीं है , ये कितनी अटपटी सी लगती है। ….. बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती … वहीँ मेरे दोस्त , बिरजू बाज , कालू कौवा , कल्कि कोयल … सभी की चोंच किनती सुन्दर है !”
काका बोले , ” सो तो है , उनकी चोंचें तो अच्छी हैं …. खैर ! तुम ये बताओ कि क्या तुम्हे खाने में केचुए और कीड़े -मकौड़े पसंद हैं ??”
” छी … ऐसी बेकार चीजें  तो मैं कभी न खाऊं … “, पट्टू ने झट से जवाब दिया .
“अच्छा छोड़ो , क्या तुम्हे मछलियाँ खिलाईं जाएं ….?”, काका ने पुछा .
…..” या फिर तुम्हे खरगोश और चूहे परोसे जाएं ..”
“वैक्क्क …. काका कैसी बातें कर रहे हैं  आप ? मैं एक तोता हूँ … मैं ये सब खाने के लिए नहीं बना हूँ …”, पट्टू नाराज़ होते हुए बोला .”
“बिलकुल सही “, काका बोले , ” यही तो मैं तुम्हे समझाना चाहता था …. ईश्वर ने तुम्हे कुछ अलग तरीके से बनाया है …, जो तुम पसंद करते हो , वो तुम्हारे दोस्तों को पसंद नहीं आएगा , और जो तुम्हारे दोस्त पसंद करते हैं वो तुम्हे नहीं  भायेगा . सोचो अगर तुम्हारी चोंच जैसी है वैसी नहीं होती तो क्या तुम अपनी फेवरेट ब्राजीलियन अखरोट खा पाते … नहीं न !!… इसलिए अपना जीवन ये सोचने में ना लगाओ कि दुसरे के पास क्या है – क्या नहीं , बस ये जानो कि तुम जिन गुणों के साथ पैदा हुए हो उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग कैसे किया जा सकता है और उसे अधिक से अधिक कैसे विकसित किया जा सकता है !”
पट्टू काका की बात समझ चुका था , वह ख़ुशी – ख़ुशी अपनी माँ के पास वापस लौट गया .

पट्टू तोते की तरह ही बहुत से लोग अक्सर अपने positive points को count कर के खुश होने की बजाये दूसरों की योग्यताएं और उपलब्धियां देखकर comparison में लग जाते हैं. Friends, दूसरों को देख कर कुछ सीखना और कुछ कर गुजरने के लिए inspire होना तो ठीक है पर बेकार के कंपैरिजन कर किसी से ईर्ष्या करना हमें disappoint ही करता है. हमें इस बात को समझना चाहिए कि हम सब अपने आप में unique हैं और हमारे पास जो abilities और qualities हैं उन्ही का प्रयोग कर के हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं !                           

The greatest virtue!(सबसे बड़ा पुण्य !)

                             सबसे बड़ा पुण्य !

एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था, हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता था. वह इतना कर्मठ था कि अपना सुख, ऐशो-आराम सब छोड़कर सारा समय जन-कल्याण में ही लगा देता था . यहाँ तक कि जो मोक्ष का साधन है अर्थात भगवत-भजन, उसके लिए भी वह समय नहीं निकाल पाता था.
Raja aur Mahatmaएक सुबह राजा वन की तरफ भ्रमण करने के लिए जा रहा था कि उसे एक देव के दर्शन हुए. राजा ने देव को प्रणाम करते हुए उनका अभिनन्दन किया और देव के हाथों में एक लम्बी-चौड़ी पुस्तक देखकर उनसे पूछा- “ महाराज, आपके हाथ में यह क्या है?”
देव बोले- “राजन! यह हमारा बहीखाता है, जिसमे सभी भजन करने वालों के नाम हैं.”
राजा ने निराशायुक्त भाव से कहा- “कृपया देखिये तो इस किताब में कहीं मेरा नाम भी है या नहीं?”
देव महाराज किताब का एक-एक पृष्ठ उलटने लगे, परन्तु राजा का नाम कहीं भी नजर नहीं आया.
राजा ने देव को चिंतित देखकर कहा- “महाराज ! आप चिंतित ना हों , आपके ढूंढने में कोई भी कमी नहीं है. वास्तव में ये मेरा दुर्भाग्य है कि मैं भजन-कीर्तन के लिए समय नहीं निकाल पाता, और इसीलिए मेरा नाम यहाँ नहीं है.”
उस दिन राजा के मन में आत्म-ग्लानि-सी उत्पन्न हुई लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इसे नजर-अंदाज कर दिया और पुनः परोपकार की भावना लिए दूसरों की सेवा करने में लग गए.
कुछ दिन बाद राजा फिर सुबह वन की तरफ टहलने के लिए निकले तो उन्हें वही देव महाराज के दर्शन हुए, इस बार भी उनके हाथ में एक पुस्तक थी. इस पुस्तक के रंग और आकार में बहुत भेद था, और यह पहली वाली से काफी छोटी भी थी.
राजा ने फिर उन्हें प्रणाम करते हुए पूछा- “महाराज ! आज कौन सा बहीखाता आपने हाथों में लिया हुआ है?”
देव ने कहा- “राजन! आज के बहीखाते में उन लोगों का नाम लिखा है जो ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय हैं !”
राजा ने कहा- “कितने भाग्यशाली होंगे वे लोग ? निश्चित ही वे दिन रात भगवत-भजन में लीन रहते होंगे !! क्या इस पुस्तक में कोई मेरे राज्य का भी नागरिक है ? ”
देव महाराज ने बहीखाता खोला , और ये क्या , पहले पन्ने पर पहला नाम राजा का ही था।
राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा- “महाराज, मेरा नाम इसमें कैसे लिखा हुआ है, मैं तो मंदिर भी कभी-कभार ही जाता हूँ ?
देव ने कहा- “राजन! इसमें आश्चर्य की क्या बात है? जो लोग निष्काम होकर संसार की सेवा करते हैं, जो लोग संसार के उपकार में अपना जीवन अर्पण करते हैं. जो लोग मुक्ति का लोभ भी त्यागकर प्रभु के निर्बल संतानो की सेवा-सहायता में अपना योगदान देते हैं उन त्यागी महापुरुषों का भजन स्वयं ईश्वर करता है. ऐ राजन! तू मत पछता कि तू पूजा-पाठ नहीं करता, लोगों की सेवा कर तू असल में भगवान की ही पूजा करता है. परोपकार और निःस्वार्थ लोकसेवा किसी भी उपासना से बढ़कर हैं.
देव ने वेदों का उदाहरण देते हुए कहा- “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छनं समाः एवान्त्वाप नान्यतोअस्ति व कर्म लिप्यते नरे..”
अर्थात ‘कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की ईच्छा करो तो कर्मबंधन में लिप्त हो जाओगे.’ राजन! भगवान दीनदयालु हैं. उन्हें खुशामद नहीं भाती बल्कि आचरण भाता है.. सच्ची भक्ति तो यही है कि परोपकार करो. दीन-दुखियों का हित-साधन करो. अनाथ, विधवा, किसान व निर्धन आज अत्याचारियों से सताए जाते हैं इनकी यथाशक्ति सहायता और सेवा करो और यही परम भक्ति है..”
राजा को आज देव के माध्यम से बहुत बड़ा ज्ञान मिल चुका था और अब राजा भी समझ गया कि परोपकार से बड़ा कुछ भी नहीं और जो परोपकार करते हैं वही भगवान के सबसे प्रिय होते हैं।
मित्रों, जो व्यक्ति निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करने के लिए आगे आते हैं, परमात्मा हर समय उनके कल्याण के लिए यत्न करता है. हमारे पूर्वजों ने कहा भी है- “परोपकाराय पुण्याय भवति” अर्थात दूसरों के लिए जीना, दूसरों की सेवा को ही पूजा समझकर कर्म करना, परोपकार के लिए अपने जीवन को सार्थक बनाना ही सबसे बड़ा पुण्य है. और जब आप भी ऐसा करेंगे तो स्वतः ही आप वह ईश्वर के प्रिय भक्तों में शामिल हो जाएंगे .